आज मेरी चाची का जन्मदिन है ....वो अब किसी बेहतर दुनिया में हैं और दुर्भाग्यवास ये जन्मदिन हम उनके भौतिक स्वरुप के साथ नहीं मना सकते.. परन्तु मैं जानता हूँ की वो जहाँ भी है ...हमे महसूस कर सकती हैं ... समस्त परिवार की तरफ से आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें ..चाची....
हम सब और खास कर कि माँ आपको बहुत याद करती है ...पर हम सब अच्छे हैं ..और अपने गुरु तथा ठाकुर जी से आपकी भावी यात्रा के लिए प्रार्थना करते हैं...
तू हवा बनकर आती
मेरे माथे को सहलाती
और चुपके से कह जाती-
"कुछ प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं
मत जहन में कोई सवाल रखना
जहाँ हूँ बेहतर हूँ मैं,
तुम बस अपना ख्याल रखना "
फिर अपने अश्रु धारों से
तेरे चरणों को पखारता
यादों के मोतियों से
तेरा आँचल सवांरता मैं
निकल पड़ता हूँ-
तेरा आशीष लेकर इस प्रशांत विश्व में
अपनी नवल भूमिका अदा करने
ये जान कर कि
तू नहीं है,कहीं नहीं है.......
और ये मानकर की
तू यहीं है,यहीं कहीं है .......
Happy Birth Day ...Chachi
This is my first step towards the endless world of www which seems to be the 4th basic need of human being.It may take a little time to catch this sky...but I am ready to fly now...I am Anurag Pathak...this has been taught to me...but i am denying this identity..sometimes in meditation ...sometime in my poetries... sometime in anger...and most of the time in love...I deny the tag of being just a name..ANURAG PATHAK
Friday, September 24, 2010
Wednesday, September 15, 2010
वो कैसा हिन्दुस्तान है?
विरासतों पर जहाँ गर्व नहीं
न धरोहरों का ज्ञान है
हिंदी ही नहीं जहाँ पर
वो कैसा हिन्दुस्तान है?
जिस भाषा में पहले बोल कहे
उस भाषा से तुझे परहेज है
देश हुआ कब का आज़ाद
तू आज भी अंग्रेज है ?
क्या सभ्यता क्या संस्कृति
तू राष्ट्र-भाषा से भी अनजान है
हिंदी नहीं जहाँ पर
वो कैसा हिन्दुस्तान है?
इसी लिपि में है कामायनी
इसी लिपि में राष्ट्र गान है
हैं इसी लिपि मे महाभारत
इसमें ही वेद पुराण है
ये देवनागरी लिपि नहीं
साक्षात देवों का आह्वान है
हिंदी ही नहीं जहाँ पर
वो कैसा हिन्दुस्तान है
अब क्यों दुनिया के सामने
इसे और विवश बता रहे हो
मनाओ जाकर पुण्यतिथि
क्यों हिंदी दिवस मना रहे हो?
पहचानते नहीं तुम उसे ही
जो असल में तुम्हारी पहचान है
हिंदी नहीं जहाँ पर
वो कैसा हिंन्दुस्तान है ?
Sunday, September 5, 2010
Wanna live the life of 1st year BIT hostel again....??
///सचमुच कमाल था वो बी ई का पहला साल था ///
वो पहली रात जो हमने हॉस्टल में बिताई थी
एक पाँव पर खड़े कर के जो नाच हमको नचाई थी
गालों को सहला कर सारे फंडे बताये थे
९० पे झुक कर सलाम करना सिखाये थे
पहली बार गालो का रंग यारों लाल था
सचमुच कमाल था वो बी ई का पहला साल था...:-)
कॉलेज का पहला दिन था
दिल में बड़ा अरमान था
पर लाइट शर्ट और डार्क पैंट के सिवा
सब कुछ यारों अनजान था
बंक का पुराना अनुभव था बहनों का ख़जाना था
कॉलेज से जल्दी जाना था
क्योंकि अगले दिन जल्दी आना था
आखिर उसके पीछे वाली सीट का सवाल था
सचमुच कमल था, वो बी ई क पहला साल था .....:-)
रात को अकेले में जब भूख हमे सताती थी
तो शीशमहल में बनने वाले पोहे की याद आती थी
जान हथेली पर रखकर हम पोहा खा कर आते थे
सूरज को गूड्मोर्निंग कह कर चैन से सो जाते थे
कॉलेज कैसे जाते अब तो इज्जत क सवाल था
सचमुच कमाल था वो बी ई क पहला साल था .... :-)
बिस्तर के नीचे कोई सी डी छिपाया करता था
तो अलमारी के पीछे कोई बीडी छिपाया करता था
कोई बीना माँगे सबको सलाह दिया करता था
तो कोई अकेले अंधेरों में सिगरेट पिया करता था
चार दीवारों के भीतर वो अलग ही संसार था
कुछ अलग करने का सबको भूत-सा सवार था
हर दिन होते थे हंगामे,होता हर रात को बवाल था
सचमुच कमाल था वो बी ई का पहला साल था.....:-)
और एक दिन अचानक खतरे क पैगाम आ गया
छलकती आँखों ने बताया सेमेस्टर एक्जाम आ गया
पहली बार लाइफ में भगवान् की याद आई थी
छः महीनो की पढाई छः रातों में जो समाई थी
खैर मेरा तो भगवान् ने जैक लगा दिया
पर मेरे दोस्तों का यूनिवर्सिटी ने बैक लगा दिया
अंतिम वक़्त पर दोस्तों का साथ न दे पाया
बस इसी बात क मलाल था
सचमुच कमाल था वो बी ई का पहला साल था .......:-)
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