Saturday, August 21, 2010

ग़ज़ल

रुखसत और उल्फत का फ़साना है ज़िन्दगी
पाकर खजाने सब गंवाना है ज़िन्दगी

रोते हुए आये थे,हम जायेंगे रुलाकर
रोते हुए काफ़िर की हँसाना है ज़िन्दगी

सफ़र ये चार पल का है न रूठ कर कटे
रूठे हुए मुशाफिर को मनाना है ज़िन्दगी

क्यों सज रहे हैं मकबरे और संगमरमर के आशियाँ
मरहूम-ऐ- मुहब्बत को दिल में बसाना है ज़िन्दगी


आज है न कल रहे,क्यों नफरतों में पल रहे
गीत रश्म-ऐ-मुहब्बत के गाना है ज़िन्दगी ...

रुखसत और उल्फत का फ़साना है ज़िन्दगी.........