नज़रों से पी रहे हैं कहीं नजाकत हो न जाये
तेरी नफरत से ही कहीं मुहब्बत हो न जाये
नज़रें मिला के बोलोगे, तो नज़रें झुका लेंगे
झुकती नज़रों से भी कहीं इबादत हो न जाये
तेरी चाहत पे नहीं हम तो तेरी नफरत पे मरते हैं
अश्कों के शराब कि कहीं आदत हो न जाये
यूँ तो ज़िन्दगी में हमने हर जंग फतह कि है
जंग-ऐ -मुहब्बत में कहीं शहादत हो न जाये
चाहते हैं नज़र बंद कर के ता -क़यामत तुमको देखें
नज़रें हटी और कहीं क़यामत हो ना जाये....
नज़रों से पी रहे हैं ...नजाकत हो न जाये....