Wednesday, October 23, 2013

दुर्गा- शक्ति - नागपाल


अपनी रक्षा करना नामर्दों,
आदि-शक्ति अकुलाई है
आज किसी मर्दानी ने
फिर से तलवार उठाई है

जात-धर्म की राजनीत
झूटी- टोपी, तेरी छद्म-प्रीत
क्षण  भर चलने देगी
वो स्त्री-शक्ति है परम जीत

तू लाख प्रयत्न कर ले, दुश्सासन !
चीर तू हर पायेगा
सौ बंधुओं के साथ भी
तू ख़ाक में मिल जायेगा


वो है दुर्गा, उसमे शक्ति
उसके साथ हैं नागपाल भी
झुक जायेगा उसके सामने
कहो! काल का कपाल भी

अनिमिष, अनिर्वच देख उसे
उसकी अक्षियों में रोष है
फिर अंतर्मन को प्रत्युत्तर दे
किसकी दृष्टि में दोष है ?

भ्रस्ताचार के रक्त बीज का
वध करने वो  आई है
अपनी रक्षा करना नामर्दों,
आदि-शक्ति अकुलाई है
आज किसी मर्दानी ने फिर से तलवार उठाई है…
     


      

Saturday, August 31, 2013

तुम…


मन के मानसरोवर में
एक हलचल सी आई तुम
बन तरंग हर किनारे तक
धीमे धीमे इठलाई तुम

नीरव शांत इस सरोवर में
जो था ज्ञान का पानी था
किसी उषा को ,बन प्रेम-कमल
ह्रदय स्थल पर खिल आई तुम

ओस बूँद- सा बिखर गया
पंक दलों की कोमल बाहों में
और बिखर कर निखर गया
मृगनैनी तेरी निगाहों में

उलझे केसों की छाया में  
हर ताप मेरा हर लो
कंचन - सी पावन देह के
आलिंगन में भर लो
तेरे चंचल ये नैननक्स

अनंत उज्वल हर रूप-अक्स
आज देख देख कर तुम्हे ऊब जाने दो
बेपनाह खूबसूरती में डूब जाने दो
मुझसे अलग हो कर भी
हो मेरी ही परछाई तुम

मन के मानसरोवर में एक हलचल सी आई तुम ....