अपनी रक्षा
करना नामर्दों,
आदि-शक्ति
अकुलाई है
आज किसी
मर्दानी ने
फिर से
तलवार उठाई है
जात-धर्म
की राजनीत
झूटी- टोपी, तेरी
छद्म-प्रीत
क्षण भर
न चलने देगी
वो स्त्री-शक्ति है परम
जीत
तू लाख
प्रयत्न कर ले,
दुश्सासन !
चीर न
तू हर पायेगा
सौ बंधुओं
के साथ भी
तू ख़ाक
में मिल जायेगा
वो है
दुर्गा, उसमे शक्ति
उसके साथ
हैं नागपाल भी
झुक जायेगा
उसके सामने
कहो! काल
का कपाल भी
अनिमिष, अनिर्वच देख
उसे
उसकी अक्षियों
में रोष है
फिर अंतर्मन
को प्रत्युत्तर दे
किसकी दृष्टि में
दोष है ?
भ्रस्ताचार के रक्त
बीज का
वध करने
वो आई
है
अपनी रक्षा
करना नामर्दों,
आदि-शक्ति
अकुलाई है
आज किसी
मर्दानी ने फिर से तलवार
उठाई है…