ये कविता उस वेदना कि कोख से जन्मी है ..जो एक युवा भारतीय के ह्रदय में हर रोज उठती है ...जब वो कभी नक्सलवादियों तो कभी आतंकवादियों के हाथों में अपनी भारत माँ का आँचल देखता है...वो सालों से अपने व्यथित मन को समझा रहा है कि वो बुद्ध, महावीर और गाँधी के देश का है.....पर अब उसे एहसास हो रहा है कि अगर दूसरों का रक्त बहाना हिंसा है तो स्वयं का रक्त बहते रहने देना भी काररक्तदान नहीं हो सकता ...यदि तलवार के दम पे दुनिया को तबाह करना नपुंसकता है तो ...तो बारूद के ढेर पर बैठ कर ध्यान करते हुए अपने देश का बलात्कार देखना भी वीरता कि निशानी नहीं हो सकती... प्रस्तुत कविता युवा भारत से एक अवतार चाहती है........... जो,आतंकवाद,नक्सलवाद और ऐसे अनेक रक्तबीजों को अहिंसक और सहनशील भारत का रक्त्चरित्र भी दिखा सके......!!!
प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता का वो अंश हैं जिसे मुझे चेतन भगत को सुनाने का मौका मिला ... उन्हें वीर रस कि ये रचना बहुत पसंद आई ...आशा है आपको भी अपने करीब प्रतीत होगीऔर हम एक नयी क्रांति कि ओर आगे बढ़ेंगे ...
अवतार
जंग लगी कृपाण मे
अब धार हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए .....
विष भरें हैं ये जलाशय
जल नहीं पीना अभी
काल का तांडव है जारी
छोड़ दो जीना अभी
हिल उठे यम का सिंहाशन
वो हुंकार हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए....
गजनबी से अजनबी तक
हर एक ने लुटा ही है
आँधियों मे बार-बार
कुनबा तेरा टुटा ही है
अब नहीं "स्वीकार" आर्यगन
"इनकार" हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए .....
अवतार हमको चाहिए .....
रास्त्रधर्म का पथ दिखाने
फांसी पर कितने लटक गए
चिताओं ने किया रोशन जिसे
वो राह ही तुम भटक गए
विधवा की तराशी हुई,रक्त की प्यासी हुई
५७ में उठी वो तलवार हमको चाहिए
हक़ सदा माँगा ही है
हक़ कभी छीना नही
मौज-मस्ती में,सरपरस्ती में
और अब जीना नहीं
जो चीर दे रावण की नाभि
वो वार हमको चाहिए
गीता बाइबिल और कुरान
क्यों व्यर्थ में हम रट रहे
धर्म,जाति और भाषा
के नाम पे क्यों बात रहे
छोड़ सारे राग द्वेष
विधवा की तराशी हुई,रक्त की प्यासी हुई
५७ में उठी वो तलवार हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए .....
अवतार हमको चाहिए .....
हक़ सदा माँगा ही है
हक़ कभी छीना नही
मौज-मस्ती में,सरपरस्ती में
और अब जीना नहीं
जो चीर दे रावण की नाभि
वो वार हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए .....
अवतार हमको चाहिए .....
गीता बाइबिल और कुरान
क्यों व्यर्थ में हम रट रहे
धर्म,जाति और भाषा
के नाम पे क्यों बात रहे
छोड़ सारे राग द्वेष
हो खड़ा जहाँ एक देश
युवा कंधों की अश्थियों पर
वो आधार हमको चाहिए
टकरा कर चट्टानों से
अब वापस नहीं होगी लहर
क्यों बरसे न उन पर कहर
जो दे रहे हमको ज़हर
इस अमावस हिंद में
एक ज्वार हमको चाहिए
जंग लगी कृपान में
अब धार हमको चाहिए
वो आधार हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए .....
अवतार हमको चाहिए .....
टकरा कर चट्टानों से
अब वापस नहीं होगी लहर
क्यों बरसे न उन पर कहर
जो दे रहे हमको ज़हर
इस अमावस हिंद में
एक ज्वार हमको चाहिए
जंग लगी कृपान में
अब धार हमको चाहिए
कर सके उद्धार वो
अवतार हमको चाहिए .....
अवतार हमको चाहिए .....