मन के मानसरोवर में
एक हलचल सी आई तुम
बन तरंग हर किनारे तक
धीमे धीमे इठलाई तुम
नीरव शांत इस सरोवर में
जो था ज्ञान का पानी था
किसी उषा को ,बन प्रेम-कमल
ह्रदय स्थल पर खिल आई तुम
ओस बूँद- सा बिखर गया
पंक दलों की कोमल बाहों में
और बिखर कर निखर गया
मृगनैनी तेरी निगाहों में
उलझे केसों की छाया में
हर ताप मेरा हर लो
कंचन - सी पावन देह के
आलिंगन में भर लो
तेरे चंचल ये नैन –नक्स
अनंत उज्वल हर रूप-अक्स
आज देख देख कर तुम्हे ऊब जाने दो
बेपनाह खूबसूरती में डूब जाने दो
मुझसे अलग हो कर भी
हो मेरी ही परछाई तुम
मन के मानसरोवर में एक हलचल सी आई तुम ....
मन के मानसरोवर में
एक हलचल सी आई तुम
धीमे धीमे इठलाई तुम
नीरव शांत इस सरोवर में
जो था ज्ञान का पानी था
किसी उषा को ,बन प्रेम-कमल
ओस बूँद- सा बिखर गया
पंक दलों की कोमल बाहों में
और बिखर कर निखर गया
उलझे केसों की छाया में
आलिंगन में भर लो
तेरे चंचल ये नैन –नक्स
मुझसे अलग हो कर भी
हो मेरी ही परछाई तुम
मन के मानसरोवर में एक हलचल सी आई तुम ....