Friday, June 18, 2010

मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ



थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ
कर दिया बदनाम सर-ए-आम चिट्ठियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ.....

है रात अँधेरी और चांदनी शुरुर में
लिख रहा है चाँद तेरे नाम चिट्ठियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ....

उल्फत का फ़साना ,था मेरा भी जमाना
लिखता था मैं भी सुबह शाम चिट्टियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ.....

खून से लिखी है मेरे मोहब्बत की दास्ताँ
होश वाले हों बेहोश,नशीली जाम चिट्ठियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ.....

दुनिया वाले सुन रहे हैं पर तुम खामोश हो
बेवफाई के नाम ये गुमनाम चिट्ठियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ.....

तो क्या हुआ जो आज हैं बेकार चिट्ठियाँ
करती थी कभी मेरा हर एक काम चिट्ठियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ.....

इस बात से है खलबली आज भी पड़ोश में
की आती थी किसकी रोज़ मेरे नाम चिट्ठियाँ
थी कभी मोहब्बत-ए-पैगाम चिट्ठियाँ.....

Saturday, June 12, 2010

जीवन सरिता

जीवन एक बहाव है ..ज़िन्दगी और नदी का सफ़र एक जैसा है.जिस तरह से नदी चट्टानों पर टकराते हुए समुन्दर तक जा पहुँचती है,उसी तरह हमे भी सारी बाधाओं को पार करते हुए पने लक्ष्य तक पहुँचाना होगा.वीर रस की मेरी यह रचना मैंने कक्षा बारहवीं में की थी, तब से आज तक ये मेरे और अन्य कई मित्रों के लिए एक उर्जा श्रोत बनी रही है... आशा है अवसाद भरे क्षणों में ये आपको जीवंत स्वर प्रदान करेगी ......

जीवन सरिता!

क्यों इतनी सुखी वीरान पड़ी है तू
माना तू रूठी- सी है
पर क्यों खुद से अनजान खड़ी है तू
क्यों सुखी वीरान पड़ी है तू ?

मानता हूँ ..अनगिनत बाधाएं हैं राहों पर
पर टिकना नहीं कभी तू अनजानी बाँहों पर
पथिक को पथ के कांटे तो सहना ही होगा
सरिता तुझे उस सागर तक तो बहना ही होगा

तू तो चंद चट्टानों से ही काटना चाहती है
इतनी जल्दी अपने पथ से हटना चाहती है?
ज़रा याद कर अपने इतिहास को
तेरी गरिमा पर हुए उपहास को

फिर चीर दे पर्वत का सीना
सिखला दे मुर्दों को जीना
दिखला दे तू प्रपात रूप
ये तुच्छ निशा, ये तुच्छ धूप

सरिता तू सब जानकार अनजान है
याद दिला दूँ तुझको-ये जीवन एक संग्राम है
तो अवसाद का नाश कर मेरा विश्वास कर
एक महान क्रांति की अनजान कड़ी है तू
क्यों सूखी वीरान पड़ी है तू...
क्यों खुद से अनजान खड़ी है तू?

जीवन सरिता!
जीवन सरिता......